ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर इंसान की कुंडली में विभिन्न प्रकार के योग बनते हैं। कई योग शुभ परिणाम लेकर आते हैं। कुछ योग जातक अशुभ परिणाम। कुंडली में इन योगों का होना बहुत अहम माना जाता है। इन योगों के कारण व्यक्ति के जीवन में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र में कई तरह के योग बताए गए हैं जैसे भद्र योग, अतिगंड योग, वैधृति योग, इंद्र योग, सिद्धि योग इत्यादि। उन्हीं में से एक होता है वैधव्य योग। अगर यह योग किसी स्त्री की कुंडली में बन जाए? तो यह स्त्री के जीवन के लिए श्राप की तरह बन जाता है। उसका जीवन दुविधाओं से भर जाता है। ऐसा लगता है जैसे दुनिया भर की विपत्तियों ने उसे घेर लिया हो।
क्या होता है वैधव्य योग
वैधव्य योग का अर्थ होता है विधवा हो जाना। यह योग जिस स्त्री की कुंडली में बनता है! उसके पति की मृत्यु हो जाती है। यही कारण है इसे काफी घातक और अशुभ माना जाता है। हिंदू परंपरा में किसी स्त्री का विधवा होना श्राप से कम नहीं है। इसीलिए महिलाओं को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
इस योग में भी ग्रह दशाओं का योगदान होता है। पति की मृत्यु हो जाने के बाद समाज में स्त्री को बुरी नजर से देखा जाता है। इससे बहुत सी जिम्मेवारियो का भार भी उस पर आ जाता है। घर चलाना, अपने बच्चों का पालन करना इत्यादि जिम्मेवारियां उसको परेशान कर देती है। इससे उसकी लाइफ में बहुत चुनौतियां आ जाती है कि भविष्य को कैसे संभाला जाए। आखिर वैधव्य योग स्त्री की कुंडली में कैसे बनता है? आइए इसके बारे में जानते है:-
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स्त्री की कुंडली में कैसे बनता है वैधव्य योग
- सातवें भाव का स्वामी मंगल होने व शनि की तीसरे, सातवे, या दशवें में दृष्टि पडने के कारण वैधव्य योग बनता है।
- इसके साथ ही सप्तमेश का संबंध शनि और मंगल से बनता हो! वह सप्तमेश निर्बल हो, तब यह योग बनता है।
- अन्य कारण अगर सप्तमेश शनि व मंगल को देखता है? तो भी ये योग बनता है।
- अगर किसी स्त्री की कुंडली में दूसरे भाव में मंगल हो? और शनि की दृष्टि पड़ती हो। व सप्तमेश आठवें, छठे या बारहवें में हो कर पीड़ित हो! तब भी यह योग बन सकता है।
- इसी के साथ सातवां भाव महिला की कुंडली में पति का या पति की आयु का भाव लग्न से दूसरा होता है! ऐसे में दांपत्य जीवन के लिए कारक शुक्र का अध्ययन करते है।
- जिस महिला की कुंडली में सातवें भाव में मंगल पापी ग्रहों से युक्त हो! या पापी ग्रह सातवे भाव में स्थित मंगल को देखते है! तो वैधव्य योग बनता है।
- अगर चंद्रमा से सातवें या आठवें भाव में पापी ग्रह हो? व मेष, वृश्चिक राशि का राहु, आठवें या बारहवें स्थान में हो! तो वृषभ, कन्या एवं धनु लग्न में वैधव्य योग बनता है।
- सातवें भाव में पापी ग्रह हो तथा चंद्रमा छठे या फिर सातवें भाव में हो! तो वैधव्य योग बनता है।
- अगर मकर लग्न हो, सातवें भाव में कर्क, सूर्य, मंगल के साथ हो तथा चंद्रमा पाप पीड़ित हो? तो वैधव्य योग बनता है।
- यदि लग्न एवं सातवें दोनों स्थानों में पापी हो? तो वैधव्य योग बनता है।
- छठे एवं आठवें भाव के स्वामी अगर छठे या व्यय भाव में पापग्रहों के साथ मौजूद होते है? तब यह योग बनता है।
द्विभार्या योग अथवा बहु विवाह क्या होता है
यह योग भी वैधव्य योग से मेल खाता है। इस योग में स्त्री के पति की मृत्यु हो जाने के बाद उसका दूसरा विवाह करवाया जाता है। इस योग को द्विभार्या योग या बहु विवाह योग कहा जाता है। ससुराल पक्ष के द्वारा इस रश्म को स्त्री के साथ निभाया जाता है। कई मामलों में इस योग के तहत महिला के एक या अधिक विवाह के योग भी बन सकते हैं। इसमें ग्रह दशााओं की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
जानिए इसके ज्योतिष उपाय
- यदि किसी महिला की कुंडली में विधवा होने का योग बनता है? तो उसको 5 साल तक मंगला गौरी का पूजन करना चाहिए।
- इसी के साथ ही महिला को विवाह से पहले कुंभ विवाह करना चाहिए।
- यदि महिला को विवाह होने के बाद वैधव्य योग का पता चलता है? तो ऐसे में उसे मंगल और शनि से जुड़े उपाय करने चाहिए।
- जिस पापी ग्रह के कारण वैधव्य योग बन रहा है! उस पापी ग्रह की शांति करवानी चाहिए।
- विवाह के बाद वैधव्य योग के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए भगवान शिव जी की नियमित रूप से पूजा करनी चाहिए।
- घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों का वंदनवार लगाए। 15 दिन बाद पुराने पत्तों को हटाकर नए पत्तों को लगाए।
- बृहस्पति की दशा को सही करने के लिए बृहस्पति पूजन भी करें।